iGrain India - नई दिल्ली । खाद्य उत्पादों की बढ़ती कीमतों एवं चावल में ऊंची महंगाई दर को देखते हुए केन्द्र सरकार गैर बासमती चावल के निर्यात में टूट का प्रतिशत अंश घटाने की योजना बना रही है। इसका उद्देश्य खाद्य महंगाई को नियंत्रित करना और घरेलू प्रभाग में चावल की पर्याप्त आरती एवं उपलब्धता सुनिश्चित करना है।
मार्च में भी चावल का घरेलू बाजार भाव काफी ऊंचे स्तर पर बरकरार रहा और इसके खुदरा मूल्य में 12.7 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई जिससे वह 44.40 रुपए प्रति किलो पर पहुंच गया। यह भाव गत वर्ष की तुलना में 13.10 प्रतिशत ऊंचा रहा।
इस समस्या से निपटने के लिए सरकार निर्यात मूलक चावल में टूट का अंश 25 प्रतिशत के वर्तमान स्तर से घटाकर 5 प्रतिशत नियत करने पर विचार कर रही है।
वरिष्ठ आधिकारिक सूत्रों के अनुसार यह नियम लागू होने पर देश से 25 प्रतिशत टूटे चावल का निर्यात रुक जाएगा और केवल 5 प्रतिशत टूटे चावल का ही शिपमेंट संभव हो पाएगा। इसके फलस्वरूप देश में चावल की उपलब्धता बढ़ जाएगी।
ध्यान देने की बात है कि भारत से 100 प्रतिशत टूटे चावल तथा गैर बासमती सफेद चावल के निर्यात पर पहले से ही प्रतिबंध लगा हुआ है जबकि इसी श्रेणी के सेला चावल पर 20 प्रतिशत का निर्यात शुल्क लागू है। अब सेला चावल का निर्यात भी सीमित करने की योजना है।
ध्यान देने की बात है कि विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) ने निर्यात मूलक चावल की क्वालिटी सम्बन्धी विनिर्दिष्टताओं में संशोधन-परिवर्तन करने का प्रस्ताव रखा है।
इसके तहत सेला चावल एवं सफेद चावल में दूर का अंश 5 प्रतिशत नियत करने का सुझाव दिया गया है जो वर्तमान समय में क्रमश: 15 प्रतिशत तथा 25 प्रतिशत तक मान्य है।
विभिन्न आयातक देशों की मांग एवं जरूरत के आधार पर निर्यातक चावल में टूट का अंश निर्धारित करते हैं। अफ्रीकी देश मुख्यत: 25 प्रतिशत सस्ता होता है।
दूसरी ओर अमरीका सहित अन्य विकसित देश 2-3 प्रतिशत टूटे चावल की मांग ज्यादा करते हैं। यदि टूट का अंश घटाया तो 25 प्रतिशत टूटे चावल की उपलब्धता घरेलू प्रभाग में बढ़ेगी और इसके दाम घटाने में सहायता मिल सकती है।