iGrain India
प्रकाशित 11 जुलाई, 2025 23:27
ओएमएसएस में बिक्री का गेहूं बाजार पर सीमित असर पड़ने की संभावना
iGrain India - नई दिल्ली। केन्द्र सरकार में खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत भारतीय खाद्य निगम के स्टॉक से मिलर्स- प्रोसेसर्स को गेहूं बेचने का निर्णय लिया है और इसके न्यूनतम (आधार भूत) आरक्षित मूल्य की घोषणा भी कर दी है।
हालांकि अभी न तो गेहूं के स्टॉक का आवंटन हुआ है, प्रत्येक खरीदार के लिए गेहूं की अधिकतम खरीद मात्रा का निर्धारण हुआ है और न ही साप्ताहिक ई-नीलामी शुरू करने की कोई तिथि निश्चित की गई है लेकिन कीमतों का निर्धारण कर दिया गया है।
इसके तहत गेहूं का रिजर्व मूल्य 2550 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित किया गया है जो न्यूनतम समर्थन मूल्य 2425 रुपए प्रति क्विंटल से 125 रुपए ज्यादा है। इसके अलावा खरीदारों को परिवहन खर्च का भी भुगतान करना पड़ेगा।
घरेलू बाजार (थोक मंडियों) में गेहूं का भाव इस आरक्षित मूल्य के आसपास ही चल रहा है और अभी फ्लोर मिलर्स- प्रोसेसर्स के पास इस महत्वपूर्ण खाद्यान्न का अच्छा खासा स्टॉक भी मौजूद है जो उसने अप्रैल-मई के दौरान किसानों से खरीदा था।
उसके लिए गेहूं का 2550 रुपए प्रति क्विंटल का न्यूनतम आरक्षित मूल्य + परिवहन लागत का स्तर ज्यादा आकर्षक नहीं होगा। लेकिन दक्षिण भारत और पूर्वी तथा पूर्वोत्तर राज्यों में इसकी खरीद में मिलर्स-प्रोसेसर्स दिलचस्पी दिखा सकते हैं क्योंकि वहां गेहूं का उत्पादन नहीं या नगण्य होता है।
ध्यान देने की बात है कि सरकार ने अभी गेहूं का न्यूनतम आरक्षित मूल्य निर्धारित किया है जबकि नीलामी के दौरान इससे ऊंचे दाम की बोली लगाई जाती है।
इसके अलावा पंजाब अथवा मध्य प्रदेश के गोदामों से बंगलोर या चेन्नई तक की पहुंच का परिवहन खर्च अलग से लग सकता है। पिछली बार सामान्य औसत क्वालिटी (एफएक्यू) तथा यूआरएस गेहूं के लिए अलग-अलग आरक्षित मूल्य निर्धारित हुआ था मगर इस बार एक ही मूल्य नियत किया गया है।
दिलचस्प तथ्य यह है कि केन्द्र सरकार की अधीनस्थ एजेंसियों- नैफेड, भारतीय राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता महासंघ (एनसीसीएफ) तथा केन्द्रीय भंडार को भी 2550 रुपए प्रति क्विंटल के मूल्य पर ही गेहूं उपलब्ध करवाने का निर्णय लिया गया है।
ये एजेंसियां भारत ब्रांड के तहत आटा की बिक्री करती है। इतना ही नहीं बल्कि सामुदायिक रसोई स्कीम के लिए भी गेहूं का दाम 2550 रुपए प्रति क्विंटल नियत हुआ है।
इससे स्पष्ट संकेत मिलता है कि इस बार सरकार ज्यादा घाटा उठाकर गेहूं बेचने के मूड में नहीं है और बाजार भाव को भी एक निश्चित स्तर पर बरकरार रखना चाहती है।
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